Shri Ganga Chalisa | श्री गंगा चालिसा एव महत्त्व

गंगोत्री से निकलती हुई नदी गंगा भारत की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है, कई राज्यों में बहने वाली गंगा न जाने कितने भारतीयों के जलचर का स्रोत है। न केवल गंगा नदी के रूप में पूजनीय है बल्कि हिंदू धर्म में माँ गंगा को एक महत्त्वपूर्ण और पूजनीय देवी माना गया है। माता पार्वती की बहन और-और राजा हिन्द्वान और मैनावती की पुत्री माता गंगा को स्वयं भगवान शिव ने अपने जटाओं में स्थान दिया है।

माँ को भागीरथी, जानवी जैसे नामो से भी जाना गया है। कहते हैं कि पापी से पापी व्यक्ति भी इनके जल में स्नान कर अपने हर पाप से मुक्ति पाता है। माता गंगा के मंत्रों के साथ-साथ उनकी पूजा अर्चना में उनकी चालीसा का पाठ करना भी एक बहुत महत्त्वपूर्ण विधि माना गया है। गंगा चालिसा (Ganga Chalisa) के पाठ से व्यक्ति अपने हर पाप से मुक्त होता है और बुराइयों से दूर रहता है। माता की महिमा इतनी महान है कि अगर मृत्यु के समय भी कोई माँ गंगा का नाम ले लेता है तो यमराज उसे हर पाप से मुक्त कर देते हैं।

Shri Ganga Chalisa | श्री गंगा चालिसा
Shri Ganga Chalisa | श्री गंगा चालिसा

श्री गंगा चालिसा (Shri Ganga Chalisa Lyrics in Hindi)

॥ दोहा ॥

जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग ।
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जननी हराना अघखानी ।
आनंद करनी गंगा महारानी ॥

जय भगीरथी सुरसरि माता ।
कलिमल मूल डालिनी विख्याता ॥

जय जय जहानु सुता अघ हनानी ।
भीष्म की माता जगा जननी ॥

धवल कमल दल मम तनु सजे ।
लखी शत शरद चंद्र छवि लजाई ॥ ४ ॥

वहां मकर विमल शुची सोहें ।
अमिया कलश कर लखी मन मोहें ॥

जदिता रत्ना कंचन आभूषण ।
हिय मणि हर, हरानितम दूषण ॥

जग पावनी त्रय ताप नासवनी ।
तरल तरंग तुंग मन भावनी ॥

जो गणपति अति पूज्य प्रधान ।
इहूं ते प्रथम गंगा अस्नाना ॥ ८ ॥

ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी ।
श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि ॥

साथी सहस्त्र सागर सुत तरयो ।
गंगा सागर तीरथ धरयो ॥

अगम तरंग उठ्यो मन भवन ।
लखी तीरथ हरिद्वार सुहावन ॥

तीरथ राज प्रयाग अक्षैवेता ।
धरयो मातु पुनि काशी करवत ॥ १२ ॥

धनी धनी सुरसरि स्वर्ग की सीधी ।
तरनी अमिता पितु पड़ पिरही ॥

भागीरथी ताप कियो उपारा ।
दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा ॥

जब जग जननी चल्यो हहराई ।
शम्भु जाता महं रह्यो समाई ॥

वर्षा पर्यंत गंगा महारानी ।
रहीं शम्भू के जाता भुलानी ॥ १६ ॥

पुनि भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो ।
तब इक बूंद जटा से पायो ॥

ताते मातु भें त्रय धारा ।
मृत्यु लोक, नाभा, अरु पातारा ॥

गईं पाताल प्रभावती नामा ।
मन्दाकिनी गई गगन ललामा ॥

मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी ।
कलिमल हरनी अगम जग पावनि ॥ २० ॥

धनि मइया तब महिमा भारी ।
धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी ॥

मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी ।
धनि सुर सरित सकल भयनासिनी ॥

पन करत निर्मल गंगा जल ।
पावत मन इच्छित अनंत फल ॥

पुरव जन्म पुण्य जब जागत ।
तबहीं ध्यान गंगा महं लागत ॥ २४ ॥

जई पगु सुरसरी हेतु उठावही ।
तई जगि अश्वमेघ फल पावहि ॥

महा पतित जिन कहू न तारे ।
तिन तारे इक नाम तिहारे ॥

शत योजन हूं से जो ध्यावहिं ।
निशचाई विष्णु लोक पद पावहीं ॥

नाम भजत अगणित अघ नाशै ।
विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे ॥ २८ ॥

जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना ।
धर्मं मूल गंगाजल पाना ॥

तब गुन गुणन करत दुख भाजत ।
गृह गृह सम्पति सुमति विराजत ॥

गंगहि नेम सहित नित ध्यावत ।
दुर्जनहूं सज्जन पद पावत ॥

उद्दिहिन विद्या बल पावै ।
रोगी रोग मुक्त हवे जावै ॥ ३२ ॥

गंगा गंगा जो नर कहहीं ।
भूखा नंगा कभुहुह न रहहि ॥

निकसत ही मुख गंगा माई ।
श्रवण दाबी यम चलहिं पराई ॥

महं अघिन अधमन कहं तारे ।
भए नरका के बंद किवारें ॥

जो नर जपी गंग शत नामा ।
सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा ॥ ३६ ॥

सब सुख भोग परम पद पावहीं ।
आवागमन रहित ह्वै जावहीं ॥

धनि मइया सुरसरि सुख दैनि ।
धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी ॥

ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा ।
सुन्दरदास गंगा कर दासा ॥

जो यह पढ़े गंगा चालीसा ।
मिली भक्ति अविरल वागीसा ॥ ४० ॥

॥ दोहा ॥

नित नए सुख सम्पति लहैं, धरें गंगा का ध्यान ।
अंत समाई सुर पुर बसल, सदर बैठी विमान ॥

संवत भुत नभ्दिशी, राम जन्म दिन चैत्र ।
पूरण चालीसा किया, हरी भक्तन हित नेत्र ॥

गंगा चालीसा पढ़ने की विधि

गंगा चालीसा (Ganga Chalisa) का पाठ करने की विधि बहुत सरल होती है, माता गंगा के चालीसा को पढ़ने के लिए सूर्योदय का समय सबसे उत्तम माना गया है।

स्नान और नित्य कर्म से मुक्त होकर माता गंगा के चित्र को एक चौकी पर कपड़ा बेचकर स्थापित कर ले। अगर आपके पास चित्र उपलब्ध नहीं है तो कोई बात नहीं अपने आगे भगवान शिव और माता गौरी की ही चित्र रखकर उनके आगे गंगाजल रख ले।

माता को सफेद पुष्प अर्पित करें और सफेद मिठाई का भोग लगा दे। इसके बाद धूप या अगरबत्ती दिखाकर माँ से प्रार्थना करें और हो सके तो एक घी का दिया भी जला दे।

अब चालीसा को ध्यान से पढ़ना शुरू करें और खत्म करने के बाद माता से अपनी मनोकामना व्यक्त करें। अब चढ़ाए गए भोग को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।

गंगा चालीसा का महत्त्व

गंगा चालीसा माता गंगा के चरित्र को वर्णन करने वाली 40 छंदों की स्तुति है। इस चालीसा के अनुसार जैसे देवी देवताओं में प्रथम पूज्य भगवान गणेश को माना गया है वैसे ही तीर्थ स्थान में नदी गंगा को सबसे पूजनीय माना जाता है। इस कलयुग में पापों को धोने वाली माँ गंगा के चरित्र को बहुत ही पवित्र माना गया है जिस वजह से ब्रह्मांड के रचयिता खुद ब्रह्मा जी ने उन्हें अपने कमंडल में स्थान दिया है। माता गंगा का आशीर्वाद इतना दिव्या है कि स्वयं देवता भी उन्हें स्वर्ग की सीढ़ी मानते हैं तो ऐसे पवित्र माता के चालीसा को पढ़ने से मनुष्य जाति का सदैव कल्याण होता है। माता गंगा की पूजा अर्चना और उनके चालीसा के पाठ से व्यक्ति को स्वयं भगवान विष्णु के बैकुंठ लोक में स्थान मिलता है और व्यक्ति सदैव कुकर्म से दूर रहकर सुखों का भोग करता है।

गंगा चालीसा के लाभ

गंगा चालीसा (Ganga Chalisa) का पाठ करने के कई लाभ हैं:

  • गंगा चालीसा के पाठ से व्यक्ति के अनगिनत पापों का नाश होता है और वह मन से पवित्र हो जाता है।
  • माता गंगा के चालीसा को पढ़ने से न जाने भक्त को कितने ही अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
  • माता गंगा के चालीसा को पढ़ने से भक्त के मन से अज्ञानता का अँधेरा दूर होकर ज्ञान बल और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
  • जो मनुष्य गंगाजल का आचमन कर इस चालीसा का पाठ करता है उसके लिए वह जल ही किसी को दिए गए दान के समान हो जाता है।
  • माता गंगा के चालीसा को पढ़ने से व्यक्ति धन संपत्ति और वैभव का मालिक होता है अथवा उसके घर में कभी भी कोई रोग नहीं आता।

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