माँ अन्नपूर्णा चालीसा (Annapurna Chalisa): आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत

जीवन को बनाए रखने के लिए हमें पोषण की आवश्यकता होती है और इस पोषण के माध्यम से ही हमारा शरीर कार्य करने के लिए ऊर्जा प्राप्त करता है। हिंदू धर्म में भोजन को दिव्य प्रसाद माना जाता है और माँ अन्नपूर्णा को भोजन की देवी के रूप में पूजा जाता है। इसलिए, भोजन करने से पहले परमात्मा और माँ अन्नपूर्णा के प्रति आभार व्यक्त करना आवश्यक है। अन्नपूर्णा चालीसा का महत्त्व इसी कारण से बढ़ जाता है। देवी अन्नपूर्णा हिंदू धर्म में एक प्रमुख स्थान रखती हैं, जो माँ जगदम्बा के पालन-पोषण करने वाले स्वरूप का प्रतीक हैं।

अन्नपूर्णा चालीसा (Annapurna Chalisa) का जाप करने से न केवल सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है, बल्कि सफलता, बुद्धि और धन के लिए माँ अन्नपूर्णा का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। अन्नपूर्णा चालीसा के नियमित पाठ न केवल जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है बल्कि परिवार को नकारात्मक शक्तियों से भी बचाता है। ऐसा माना जाता है कि माँ अन्नपूर्णा की कृपा से वित्तीय लाभ होता है, जिससे व्यक्ति के घर में देवी लक्ष्मी का आगमन होता है। अन्नपूर्णा चालीसा का जाप करने से जीवन की प्रतिकूलताओं और चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है।

माँ अन्नपूर्णा चालीसा (Annapurna Chalisa)

माँ अन्नपूर्णा चालीसा (Annapurna Chalisa Lyrics in Hindi)

॥ दोहा ॥

विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय ।
अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय ।

॥ चौपाई ॥

नित्य आनंद करिणी माता, वर अरु अभय भाव प्रख्याता ॥

जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी, अखिल पाप हर भव-भय-हरनी ॥

श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि, संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि ॥

काशी पुराधीश्वरी माता, माहेश्वरी सकल जग त्राता ॥

वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी, विश्व विहारिणि जय ! कल्याणी ॥

पतिदेवता सुतीत शिरोमणि, पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि ॥

पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा, योग अग्नि तब बदन जरावा ॥

देह तजत शिव चरण सनेहू, राखेहु जात हिमगिरि गेहू ॥

प्रकटी गिरिजा नाम धरायो, अति आनंद भवन मँह छायो ॥

नारद ने तब तोहिं भरमायहु, ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु ॥ 10 ॥

ब्रहमा वरुण कुबेर गनाये, देवराज आदिक कहि गाये ॥

सब देवन को सुजस बखानी, मति पलटन की मन मँह ठानी ॥

अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या, कीहनी सिद्ध हिमाचल कन्या ॥

निज कौ तब नारद घबराये, तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये ॥

करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ, संत बचन तुम सत्य परेखेहु ॥

गगनगिरा सुनि टरी न टारे, ब्रहां तब तुव पास पधारे ॥

कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा, देहुँ आज तुव मति अनुरुपा ॥

तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी, कष्ट उठायहु अति सुकुमारी ॥

अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों, है सौगंध नहीं छल तोसों ॥

करत वेद विद ब्रहमा जानहु, वचन मोर यह सांचा मानहु ॥ 20 ॥

तजि संकोच कहहु निज इच्छा, देहौं मैं मनमानी भिक्षा ॥

सुनि ब्रहमा की मधुरी बानी, मुख सों कछु मुसुकाय भवानी ॥

बोली तुम का कहहु विधाता, तुम तो जगके स्रष्टाधाता ॥

मम कामना गुप्त नहिं तोंसों, कहवावा चाहहु का मोंसों ॥

दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा, शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा ॥

सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये, कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये ॥

तब गिरिजा शंकर तव भयऊ, फल कामना संशयो गयऊ ॥

चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा, तब आनन महँ करत निवासा ॥

माला पुस्तक अंकुश सोहै, कर मँह अपर पाश मन मोहै ॥

अन्न्पूर्णे ! सदापूर्णे, अज अनवघ अनंत पूर्णे ॥ 30 ॥

कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ, भव विभूति आनंद भरी माँ ॥

कमल विलोचन विलसित भाले, देवि कालिके चण्डि कराले ॥

तुम कैलास मांहि है गिरिजा, विलसी आनंद साथ सिंधुजा ॥

स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी, मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी ॥

विलसी सब मँह सर्व सरुपा, सेवत तोहिं अमर पुर भूपा ॥

जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा, फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा ॥

प्रात समय जो जन मन लायो, पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो ॥

स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत, परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत ॥

राज विमुख को राज दिवावै, जस तेरो जन सुजस बढ़ावै ॥

पाठ महा मुद मंगल दाता, भक्त मनोवांछित निधि पाता ॥ 40 ॥

॥ दोहा ॥

जो यह चालीसा सुभग, पढ़ि नावैंगे माथ ।
तिनके कारज सिद्ध सब, साखी काशी नाथ ॥

अन्नपूर्णा चालीसा करने की विधि

अन्नपूर्णा चालीसा (Annapurna Chalisa) का पाठ करने की विधि बहुत सरल होती है, इसके पाठ करने की विधि निम्नलिखित है:

  • अपने आप को शारीरिक और मानसिक रूप से साफ करने से शुरुआत करें।
  • पाठ के लिए एक शांत और स्वच्छ स्थान ढूँढें, एक शांतिपूर्ण वातावरण बनाएँ।
  • एक छवि के साथ एक छोटी वेदी की व्यवस्था करें, पवित्र वातावरण को बढ़ाने के लिए फूल, धूप और दीपक जोड़ें।
  • देवी अन्नपूर्णा का ध्यान करें और प्रार्थना या मंत्र के साथ उनकी उपस्थिति का आह्वान करें।
  • अन्नपूर्णा चालीसा का भक्तिपूर्वक पाठ करना शुरू करें। प्रत्येक श्लोक के अर्थ पर ध्यान केंद्रित करते हुए, इसे जोर से या ध्यानपूर्वक पढ़ सकते हैं।
  • अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ सोमवार के दिन पूजा के समय करना चाहिए।

अन्नपूर्णा चालीसा के महत्त्व

अन्नपूर्णा चालीसा (Annapurna Chalisa) देवी अन्नपूर्णा को समर्पित एक प्रमुख स्तुति है जिसमें 40 छोटे श्लोक हैं। इस चालिसा के माध्यम से भक्त भोजन और समृद्धि की कामना करते है। लोग इसे चालिसा को पढ़ते हुए देवी का कृपा और आशीर्वाद मांगते हैं, खासकर अनाज, समृद्धि और सम्पूर्ण कल्याण के लिए। अन्नपूर्णा देवी हिन्दू सांस्कृतिक की एक महत्त्वपूर्ण देवी हैं और उन्हें खुश करने के लिये इस चालीसा को त्योहारों, खास आराधनाओं और अनुष्ठान का हिस्सा माना जाता है। साथ में आप इसे रोज़ाना की प्रार्थना में शामिल कर सकते है, जिससे माता अन्नपुर्णा की कृपा सदैव बनी रहती है।

अन्नपूर्णा चालीसा के लाभ

अन्नपूर्णा चालीसा (Annapurna Chalisa) का पाठ करने के कई लाभ हैं:

  • माँ अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करने से सुख और सौभाग्य बढ़ती है।
  • माँ अन्नपूर्णा की कृपा से भक्तो को बुद्धि, धन, बल और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  • अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति धनी होता है तथा तरक्की होती है।
  • अन्नपूर्णा माता और उनके चालीसा के प्रभाव से भक्त हर तरह के सुख का भागी बनता और उसके कष्ट दूर होते है।
  • अन्नपूर्णा चालीसा का नियमित पाठ करने से अच्छी स्वस्थ बनी रहती है तथा घर में भोजन की कमी नहीं होती एवं परिवार को बुरी शक्तियों और नकारात्मक से सुरक्षा मिलती है।

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