भगवान भैरव या भैरवनाथ हिंदू धर्म में एक बहुत महत्त्वपूर्ण देवता माने गए हैं, उन्हें भगवान शिव का पांचवा रूप माना जाता है भगवान शिव ने देवताओं और राक्षसों के बीच चल रही लड़ाई को समाप्त करने के लिए भगवान भैरव की उत्पत्ति की थी। पूरे भारत नेपाल और श्रीलंका जैसे देश में भगवान भैरव को पूजा जाता है। भगवान भैरव को मृत्यु और समय का अधिपति माना गया है। भगवान भैरवनाथ अधिक दयालु और शीघ्र प्रश्न होने वाले देवताओं में से एक है।
भारत के अलग-अलग हिस्सों में उन्हें अलग-अलग नाम से जाना गया है जैसे कि महाराष्ट्र में उनकी पूजा भगवान खंडोबा के रूप में की जाती है वही दक्षिण भारत में वह भगवान शास्ता के रूप में प्रसिद्ध है। भगवान भैरवनाथ का चालीसा उनके अनुष्ठान में अहम माना गया है, जो भक्त भैरव चालीसा (Bhairav Chalisa) का पाठ सच्चे मन से करते हैं भगवान भैरव उन पर सदा प्रसन्न रहते हैं और उनकी कृपा उसे व्यक्ति पर अंततः बनी रहती है। भारत के उज्जैन और काशी में भगवान भैरव के मंदिर स्थित है।
॥ दोहा ॥
श्री गणपति गुरु गौरि पद प्रेम सहित धरि माथ ।
चालीसा वन्दन करौं श्री शिव भैरवनाथ ॥
श्री भैरव सङ्कट हरण मङ्गल करण कृपाल ।
श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय श्री काली के लाला । जयति जयति काशी-कुतवाला ॥
जयति बटुक-भैरव भय हारी । जयति काल-भैरव बलकारी ॥
जयति नाथ-भैरव विख्याता । जयति सर्व-भैरव सुखदाता ॥
भैरव रूप कियो शिव धारण । भव के भार उतारण कारण ॥
भैरव रव सुनि ह्वै भय दूरी । सब विधि होय कामना पूरी ॥
शेष महेश आदि गुण गायो । काशी-कोतवाल कहलायो ॥
जटा जूट शिर चन्द्र विराजत । बाला मुकुट बिजायठ साजत ॥
कटि करधनी घूँघरू बाजत । दर्शन करत सकल भय भाजत ॥
जीवन दान दास को दीन्ह्यो । कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो ॥
वसि रसना बनि सारद-काली । दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली ॥
धन्य धन्य भैरव भय भञ्जन । जय मनरञ्जन खल दल भञ्जन ॥
कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा । कृपा कटाक्श सुयश नहिं थोडा ॥
जो भैरव निर्भय गुण गावत । अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत ॥
रूप विशाल कठिन दुख मोचन । क्रोध कराल लाल दुहुँ लोचन ॥
अगणित भूत प्रेत सङ्ग डोलत । बं बं बं शिव बं बं बोलत ॥
रुद्रकाय काली के लाला । महा कालहू के हो काला ॥
बटुक नाथ हो काल गँभीरा । श्वेत रक्त अरु श्याम शरीरा ॥
करत नीनहूँ रूप प्रकाशा । भरत सुभक्तन कहँ शुभ आशा ॥
रत्न जड़ित कञ्चन सिंहासन । व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन ॥
तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं । विश्वनाथ कहँ दर्शन पावहिं ॥
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय । जय उन्नत हर उमा नन्द जय ॥
भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय । वैजनाथ श्री जगतनाथ जय ॥
महा भीम भीषण शरीर जय । रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय ॥
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय । स्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय ॥
निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय । गहत अनाथन नाथ हाथ जय ॥
त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय । क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ॥
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय । कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ॥
रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर । चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ॥
करि मद पान शम्भु गुणगावत । चौंसठ योगिन सङ्ग नचावत ॥
करत कृपा जन पर बहु ढङ्गा । काशी कोतवाल अड़बङ्गा ॥
देयँ काल भैरव जब सोटा । नसै पाप मोटा से मोटा ॥
जनकर निर्मल होय शरीरा । मिटै सकल सङ्कट भव पीरा ॥
श्री भैरव भूतोङ्के राजा । बाधा हरत करत शुभ काजा ॥
ऐलादी के दुःख निवारयो । सदा कृपाकरि काज सम्हारयो ॥
सुन्दर दास सहित अनुरागा । श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ॥
श्री भैरव जी की जय लेख्यो । सकल कामना पूरण देख्यो ॥
॥ दोहा ॥
जय जय जय भैरव बटुक स्वामी सङ्कट टार ।
कृपा दास पर कीजिए शङ्कर के अवतार ॥
श्री भैरव चालीसा पढ़ने की विधि
श्री भैरव चालीसा (Bhairav Chalisa) का पाठ करने की विधि बहुत सरल होती है, इसके पाठ करने की विधि निम्नलिखित है:
- प्रातः काल उठकर स्नान कर ले और पूजा स्थान को साफ कर दे।
- इसके पश्चात भगवान भैरवनाथ के चित्र को एक पवित्र स्थान पर स्थापित कर दे।
- भगवान भैरवनाथ की प्रार्थना कर उन्हें धूप या अगरबत्ती दिखा दे और उनके आगे एक सरसों के तेल का दीपक जला दे।
- भगवान भैरवनाथ को प्रसाद के रूप में तिल या उड़द का भोग लगा दे।
- इसके बाद भगवान भैरव नाथ की चालीसा का पाठ करें और याचना करें।
- भगवान से अपनी गलतियों के लिए माफी मांगे और उनके कृपा की प्रार्थना करें।
श्री भैरव चालीसा का महत्त्व
श्री भैरव चालीसा (Bhairav Chalisa) भगवान भैरवनाथ की स्तुति करती है जिसमें उनके इस चालीसा के पाठ से भक्तों के ऊपर होने वाले परोपकार का वर्णन किया गया है। जो व्यक्ति इस चालीसा को पढ़ता है उसकी कभी भी अस्मिक मृत्यु नहीं आती और वह हर तरह के दुर्घटनाओं से बचता है। इस चालीसा के पाठ से व्यक्ति सांसारिक वासनाओं से दूर रहता है और उसका झुकाव भगवान भैरवनाथ के प्रति बढ़ता चला जाता है। यदि आपने कहीं भगवान भैरव की मूर्ति देखी होगी तो यह जरूर गौर किया होगा कि वह अपने हाथ में भगवान ब्रह्मा का सर पकड़े रहते हैं, उन्होंने ब्रह्मा जी के अहंकार के कारण बस अपने नाखून से उनका सर काट डाला था इसलिए यह माना गया है कि जो व्यक्ति इस चालीसा को पढ़ता है वह सदा अपने अहंकार पर नियंत्रण रखता है। इस चालीसा को पढ़ने मात्र से व्यक्ति के सारे शत्रुओं का नाश होता है एवं व्यक्ति काम, लोभ, वासना जैसी बुराइयों से कोसों दूर रहता है।
श्री भैरव चालीसा से होने वाले लाभ
भले ही भगवान भैरव को भयावा स्वरूप में दिखाया गया है लेकिन जो भक्त उनके चालीसा को सच्चे हृदय से पढ़ता है उसके हर प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर होते हैं।
भगवान भैरव के चालीसा को पढ़ने से व्यक्ति को अष्ट सिद्धि नौ निधि की प्राप्ति होती है और व्यक्ति निरोगी काया पाता है।
इस चालीसा के पाठ से भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है और उन पर भगवान भैरवनाथ या काल भैरव का आशीर्वाद सदा बना रहता है।
भगवान भैरव के चालीसा को पढ़ने से व्यक्ति के अंदर लोभ जैसी भावनाओं का नाश होता है और उसके अंदर भय खत्म होकर साहस बढ़ता है।
भगवान भैरव को भूतों का देवता माना गया है इसलिए उनके चालीसा को पढ़ने से एवं उनकी पूजा अर्चना से व्यक्ति सदैव भूत प्रेत जैसी बाधा से दूर रहता है।
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