श्री चित्रगुप्त चालीसा | Shri Chitragupt Chalisa

शास्त्रों के अनुसार जब भगवान विष्णु को अपनी माया से सृष्टि रचना की जिम्मेदारी मिली तो उनकी नाभि से एक कमल की उत्पत्ति हुई जिस पर एक पुरुष का स्थान था और वह ब्रह्मा जी कहलाए। ब्रह्मा जी ने ही सृष्टि का निर्माण करना शुरू किया उन्होंने देव, असुर, गंधर्व, स्त्री पुरुष, पशु पक्षी और अप्सरा आदि का निर्माण किया। ब्रह्मांड का निर्माण करते वक्त उन्होंने सोचा कि कोई ऐसा भी होना चाहिए जो इन जीवों को उनके किए गए कर्मों की सजा दे, इस वजह से यमराज जी का भी जन्म हुआ मगर जब यमराज जी ने जन्म लिया तो उन्हें एक साथी की आवश्यकता पड़ी और यह मांग उन्होंने ब्रह्मा जी से की किंतु ब्रह्मा जी ध्यान में लीन हो गए।

जब 1000 वर्ष के बाद ब्रह्मा जी के तप का समापन हुआ तो उनके काया से एक सुंदर पुरुष का जन्म हुआ ब्रह्मा जी के काया से जन्म लेने के कारण उन्हें कायस्थ का नाम मिला और बाद में उनका नाम चित्रगुप्त हुआ। कायस्थ जाति के लोग भगवान चित्रगुप्त के ही वंशज माने गए हैं। धर्मराज चित्रगुप्त यमराज के साथ रहकर ब्रह्मांड के जीवों के पाप पुण्य का हिसाब रखते हैं और उनके किए गए कर्मों के अनुसार न्याय करते हैं। महाराज चित्रगुप्त की पूजा अर्चना में चित्रगुप्त चालीसा (Chitragupt Chalisa) का पाठ बहुत ही अहम माना गया है।

Shri Chitragupt Chalisa

श्री चित्रगुप्त चालीसा (Shri Chitragupt Chalisa Lyrics in Hindi)

॥ दोहा ॥

सुमिर चित्रगुप्त ईश को, सतत नवाऊ शीश।
ब्रह्मा विष्णु महेश सह, रिनिहा भए जगदीश॥

करो कृपा करिवर वदन, जो सरशुती सहाय।
चित्रगुप्त जस विमलयश, वंदन गुरूपद लाय॥

॥ चौपाई ॥

जय चित्रगुप्त ज्ञान रत्नाकर।
जय यमेश दिगंत उजागर॥

अज सहाय अवतरेउ गुसांई।
कीन्हेउ काज ब्रम्ह कीनाई॥

श्रृष्टि सृजनहित अजमन जांचा।
भांति-भांति के जीवन राचा॥

अज की रचना मानव संदर।
मानव मति अज होइ निरूत्तर॥ ४ ॥

भए प्रकट चित्रगुप्त सहाई।
धर्माधर्म गुण ज्ञान कराई॥

राचेउ धरम धरम जग मांही।
धर्म अवतार लेत तुम पांही॥

अहम विवेकइ तुमहि विधाता।
निज सत्ता पा करहिं कुघाता॥

श्रष्टि संतुलन के तुम स्वामी।
त्रय देवन कर शक्ति समानी॥ ८ ॥

पाप मृत्यु जग में तुम लाए।
भयका भूत सकल जग छाए॥

महाकाल के तुम हो साक्षी।
ब्रम्हउ मरन न जान मीनाक्षी॥

धर्म कृष्ण तुम जग उपजायो।
कर्म क्षेत्र गुण ज्ञान करायो॥

राम धर्म हित जग पगु धारे।
मानवगुण सदगुण अति प्यारे॥ १२ ॥

विष्णु चक्र पर तुमहि विराजें।
पालन धर्म करम शुचि साजे॥

महादेव के तुम त्रय लोचन।
प्रेरकशिव अस ताण्डव नर्तन॥

सावित्री पर कृपा निराली।
विद्यानिधि माँ सब जग आली॥

रमा भाल पर कर अति दाया।
श्रीनिधि अगम अकूत अगाया॥ २० ॥

ऊमा विच शक्ति शुचि राच्यो।
जाकेबिन शिव शव जग बाच्यो॥

गुरू बृहस्पति सुर पति नाथा।
जाके कर्म गहइ तव हाथा॥

रावण कंस सकल मतवारे।
तव प्रताप सब सरग सिधारे॥

प्रथम् पूज्य गणपति महदेवा।
सोउ करत तुम्हारी सेवा॥ २४ ॥

रिद्धि सिद्धि पाय द्वैनारी।
विघ्न हरण शुभ काज संवारी॥

व्यास चहइ रच वेद पुराना।
गणपति लिपिबध हितमन ठाना॥

पोथी मसि शुचि लेखनी दीन्हा।
असवर देय जगत कृत कीन्हा॥

लेखनि मसि सह कागद कोरा।
तव प्रताप अजु जगत मझोरा॥ २८ ॥

विद्या विनय पराक्रम भारी।
तुम आधार जगत आभारी॥

द्वादस पूत जगत अस लाए।
राशी चक्र आधार सुहाए॥

जस पूता तस राशि रचाना।
ज्योतिष केतुम जनक महाना॥

तिथी लगन होरा दिग्दर्शन।
चारि अष्ट चित्रांश सुदर्शन॥ ३२ ॥

राशी नखत जो जातक धारे।
धरम करम फल तुमहि अधारे॥

राम कृष्ण गुरूवर गृह जाई।
प्रथम गुरू महिमा गुण गाई॥

श्री गणेश तव बंदन कीना।
कर्म अकर्म तुमहि आधीना॥

देववृत जप तप वृत कीन्हा।
इच्छा मृत्यु परम वर दीन्हा॥ ३६ ॥

धर्महीन सौदास कुराजा।
तप तुम्हार बैकुण्ठ विराजा॥

हरि पद दीन्ह धर्म हरि नामा।
कायथ परिजन परम पितामा॥

शुर शुयशमा बन जामाता।
क्षत्रिय विप्र सकल आदाता॥

जय जय चित्रगुप्त गुसांई।
गुरूवर गुरू पद पाय सहाई॥ ४० ॥

जो शत पाठ करइ चालीसा।
जन्ममरण दुःख कटइ कलेसा॥

विनय करैं कुलदीप शुवेशा।
राख पिता सम नेह हमेशा॥

॥ दोहा ॥

ज्ञान कलम, मसि सरस्वती, अंबर है मसिपात्र।
कालचक्र की पुस्तिका, सदा रखे दंडास्त्र॥

पाप पुन्य लेखा करन, धार्यो चित्र स्वरूप।
श्रृष्टिसंतुलन स्वामीसदा, सरग नरक कर भूप॥

॥ इति श्री चित्रगुप्त चालीसा समाप्त ॥

चित्रगुप्त चालीसा पढ़ने की विधि

चित्रगुप्त चालीसा (Chitragupt Chalisa) का पाठ करने की विधि बहुत सरल होती है, इसके पाठ करने की विधि निम्नलिखित है:

  • चित्रगुप्त के चालीसा को पढ़ने के लिए किसी भी दिन प्रातः काल उठकर स्नान, नित्य कर्म से मुक्त हो जाए।
  • भगवान चित्रगुप्त के चित्र या मूर्ति को एक चौकी पर कपड़ा बिछा कर स्थापित कर ले।
  • भगवान को फूल अर्पित कर उन्हें मिष्ठान का भोग लगाए।
  • भगवान को रोली का टीका लगाकर उनको अक्षत भी अर्पित करें।
  • इसके बाद भगवान गणेश से प्रार्थना कर भगवान चित्रगुप्त के चालीसा का पाठ करें।
  • पाठ को धूप या अगरबत्ती भगवान को दिखाकर समाप्त करें।
  • अंत में एक घी का दिया भगवान के आगे लगा दे।

चित्रगुप्त चालीसा का महत्त्व

हिंदू धर्म में मनुष्य के कर्म उसके जीवन का बहुत ही महत्त्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि इसी कर्मों के अनुसार उनके साथ होने वाली अच्छाई या बुराई का फैसला होता है, और इन्हीं कर्मों का लेखा-जोखा सब महाराज चित्रगुप्त रखते हैं।

चित्रगुप्त के चालीसा को पढ़ने से व्यक्ति अनजाने में किए गए पापों से मुक्त होता है और भक्त की उम्र लंबी हो जाती है। पुराणों के अनुसार धर्मराज अर्थात् चित्रगुप्त जी को यमराज जी, संसार के जीवों के पाप-पुण्यों का लेखा-जोखा रखने और न्याय करने के लिए रखते है। भगवान चित्रगुप्त इन सभी पाप पुण्यों के चित्रों को से संचित करके रखते है। जो भी व्यक्ति रोज चित्रगुप्त चालीसा का पाठ पढ़ता है, उससे चित्रगुप्त जी जल्द ही प्रसन्न होते हैं और जाने अनजानें में हुए पापों का नाश करते है। महाराज चित्रगुप्त को अत्यधिक बुद्धि वाला भी माना गया है जिस वजह से उनकी चालीसा का पाठ विद्यार्थियों के लिए भी उत्तम माना गया है। श्री चित्रगुप्त चालीसा के पाठ से कलाकार और लेखकों को सफलता मिलती है और वह सभी काम में आगे होते हैं। चित्रगुप्त की चालीसा को पढ़ने से व्यक्ति के जीवन में हर प्रकार की दिक्कतों का अंत होता है और उसके कर्म अच्छे होते हैं।

चित्रगुप्त चालीसा के लाभ

चित्रगुप्त चालीसा (Chitragupt Chalisa) का पाठ करने के लाभ:

  • महाराज चित्रगुप्त को कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाला कहाँ गया है जिस वजह से उनके चालीसा को पढ़ने से व्यक्ति के अच्छे कर्म बढ़ते हैं और व्यक्ति कुकर्मों से दूर रहता है।
  • श्री चित्रगुप्त के चालीसा को पढ़ने से व्यक्ति को अपने अच्छे कर्मों का फल मिलता है और वह सदैव धर्म की मार्ग पर आगे बढ़ता चला जाता है।
  • इसके पाठ से विद्यार्थी बुद्धिमान होते हैं अथवा उनका पढ़ाई में मन लगता है और लेखक को भी इनके चालीसा के पाठ से अत्यधिक लाभ होता है।
  • चालीसा को पढ़ने से व्यक्ति सुख में जीवन जीता है और उसे कभी भी धन संपदा की कोई कमी नहीं होती।
  • चित्रगुप्त के चालीसा से अज्ञान व्यक्ति भी बुद्धिमान तथा गुणवान हो जाता है और उसके यश में वृद्धि होती है।

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