जब माता सती को अपने पिता दक्ष के यहाँ यज्ञ में जाने के लिए भगवान शिव से अनुमति लेनी थी तब उन्होंने अपने आदि शक्ति के स्वरूप को दिखाने के लिए महाविद्याओं को प्रकट किया था उन महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या माता बगलामुखी थी। बगलामुखी शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसमें बगल का अर्थ दुल्हन होता है जिस वजह से माता को सौंदर्य की भी देवी माना गया है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र को माता बगलामुखी के प्रकट होने का स्थान माना गया है।
माता बगलामुखी को हमेशा से ही भक्तों के जीवन में शत्रुओं के नाश के लिए पूजा जाता है माता बगलामुखी अपने भक्तों पर किसी भी प्रकार के दुख को नहीं आने देती, ऐसा भी कहते हैं कि जिन भक्तों को किसी भी प्रकार की सिद्धि की जरूरत होती है माता बगलामुखी की पूजा अर्चना उन लोगों के लिए सबसे सर्वोत्तम माना गया है। जो लोग तंत्र विद्या में विश्वास रखते हैं वह भी बगलामुखी माता की पूजा अर्चना करते हैं और उनके अनुष्ठान में उनके चालीसा यानी कि श्री बगलामुखी चालीसा (Baglamukhi Chalisa) का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है।
माँ बगलामुखी चालीसा (Maa Baglamukhi Chalisa Lyrics in Hindi)
॥ दोहा ॥
सिर नवाइ बगलामुखी, लिखूं चालीसा आज ॥
कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय श्री बगला माता ।
आदिशक्ति सब जग की त्राता ॥
बगला सम तब आनन माता ।
एहि ते भयउ नाम विख्याता ॥
शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी ।
असतुति करहिं देव नर-नारी ॥
पीतवसन तन पर तव राजै ।
हाथहिं मुद्गर गदा विराजै ॥ 4 ॥
तीन नयन गल चम्पक माला ।
अमित तेज प्रकटत है भाला ॥
रत्न-जटित सिंहासन सोहै ।
शोभा निरखि सकल जन मोहै ॥
आसन पीतवर्ण महारानी ।
भक्तन की तुम हो वरदानी ॥
पीताभूषण पीतहिं चन्दन ।
सुर नर नाग करत सब वन्दन ॥ 8 ॥
एहि विधि ध्यान हृदय में राखै ।
वेद पुराण संत अस भाखै ॥
अब पूजा विधि करौं प्रकाशा ।
जाके किये होत दुख-नाशा ॥
प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै ।
पीतवसन देवी पहिरावै ॥
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन ।
अबिर गुलाल सुपारी चन्दन ॥ 12 ॥
माल्य हरिद्रा अरु फल पाना ।
सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना ॥
धूप दीप कर्पूर की बाती ।
प्रेम-सहित तब करै आरती ॥
अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे ।
पुरवहु मातु मनोरथ मोरे ॥
मातु भगति तब सब सुख खानी ।
करहुं कृपा मोपर जनजानी ॥ 16 ॥
त्रिविध ताप सब दुख नशावहु ।
तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ॥
बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं ।
अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं ॥
पूजनांत में हवन करावै ।
सा नर मनवांछित फल पावै ॥
सर्षप होम करै जो कोई ।
ताके वश सचराचर होई ॥ 20 ॥
तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै ।
भक्ति प्रेम से हवन करावै ॥
दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई ।
निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई ॥
फूल अशोक हवन जो करई ।
ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई ॥
फल सेमर का होम करीजै ।
निश्चय वाको रिपु सब छीजै ॥ 24 ॥
गुग्गुल घृत होमै जो कोई ।
तेहि के वश में राजा होई ॥
गुग्गुल तिल संग होम करावै ।
ताको सकल बंध कट जावै ॥
बीलाक्षर का पाठ जो करहीं ।
बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं ॥
एक मास निशि जो कर जापा ।
तेहि कर मिटत सकल संतापा ॥ 28 ॥
घर की शुद्ध भूमि जहं होई ।
साध्का जाप करै तहं सोई ॥
सेइ इच्छित फल निश्चय पावै ।
यामै नहिं कदु संशय लावै ॥
अथवा तीर नदी के जाई ।
साधक जाप करै मन लाई ॥
दस सहस्र जप करै जो कोई ।
सक काज तेहि कर सिधि होई ॥ 32 ॥
जाप करै जो लक्षहिं बारा ।
ताकर होय सुयशविस्तारा ॥
जो तव नाम जपै मन लाई ।
अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई ॥
सप्तरात्रि जो पापहिं नामा ।
वाको पूरन हो सब कामा ॥
नव दिन जाप करे जो कोई ।
व्याधि रहित ताकर तन होई ॥ 36 ॥
ध्यान करै जो बन्ध्या नारी ।
पावै पुत्रादिक फल चारी ॥
प्रातः सायं अरु मध्याना ।
धरे ध्यान होवैकल्याना ॥
कहं लगि महिमा कहौं तिहारी ।
नाम सदा शुभ मंगलकारी ॥
पाठ करै जो नित्या चालीसा ।
तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ॥ 40 ॥
॥ दोहा ॥
सन्तशरण को तनय हूं, कुलपति मिश्र सुनाम ।
हरिद्वार मण्डल बसूं , धाम हरिपुर ग्राम ॥
उन्नीस सौ पिचानबे सन् की, श्रावण शुक्ला मास ।
चालीसा रचना कियौ, तव चरणन को दास ॥
बगलामुखी चालीसा पढ़ने की विधि
बगलामुखी चालीसा (Baglamukhi Chalisa) का पाठ करने की विधि बहुत सरल होती है, माता बगलामुखी की पूजा अर्चना आप आदिशक्ति के रूप में कर सकते हैं। इसके पाठ करने की विधि निम्नलिखित है:
- माता की पूजा करने के लिए स्वयं को मानसिक और शारीरिक तौर पर साफ कर ले।
- माता बगलामुखी को पीतांबरी भी कहा गया है क्योंकि उन्हें पीला रंग अत्यधिक पसंद है तो आप माता को पीले फूल या फिर चंपा के फूल चढ़ा सकते हैं।
- आप माता को पीले रंग का वस्त्र समर्पित करके उनसे अपनी मंगल की कामना कर सकते हैं।
- माता को भोग लगाने के बाद उनके चालीसा का अर्थ सहित पाठ करें और पाठ समाप्त होने के बाद माता को एक नारियल अर्पित करें।
- पाठ करने के पश्चात माता रानी से अपने मन की इच्छा कहे और उनसे अपने जीवन के उन्नति के लिए प्रार्थना करें।
बगलामुखी चालीसा का महत्त्व
माता बगलामुखी की सर्वप्रथम प्रार्थना स्वयं ब्रह्मांड के रचयिता ब्रह्मा जी ने की थी जिस वजह से उन्हें इतना अत्यधिक पूज्य माना गया है माता बगलामुखी चालीसा (Baglamukhi Chalisa) के पाठ से भक्ति के बड़े से बड़े शत्रुओं का भी नाश होता है। देवी बगलामुखी के दूसरे उपासक भगवान विष्णु एवं तीसरे भगवान परशुराम हुए। हमारे भारत में माता बगलामुखी के तीन मंदिर प्रसिद्ध है जिसमें से पहले मंदिर मध्य प्रदेश के दतिया में है दूसरा मंदिर हिमाचल के कांगड़ा में है और तीसरा मंदिर प्रदेश के नलखेड़ा में है और जो भक्त इन तीनों में से किसी भी स्थान पर जाकर माता की पूजा अर्चना करते हैं और उनके चालीसा का पाठ करते हैं माँ उन भक्तों से बहुत ही प्रसन्न होती है और उन्हें दिव्य आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
बगलामुखी चालीसा के लाभ
माता बगलामुखी की पूजा खास कर शत्रु नाश और वाद विवाद से शांति पाने के लिए की जाती है उनके चालीसा के पाठ से व्यक्ति के जीवन में शत्रुओं की कमी आती है और कोर्ट कचहरी के मामलों में व्यक्ति सफल होता है।
माता के चालीसा के पाठ से व्यक्ति को किसी प्रकार की भी बाधा से मुक्ति मिलती है और उसके जीवन में धन धन्य एवं अच्छे कर्मों की कभी कमी नहीं होती।
माता के चालीसा के पाठ से भक्त मोक्ष और भोग दोनों प्राप्त करते हैं और यदि अगर माता उनसे खुश हो जाए तो वह उन्हें दिव्य वाणी का भी आशीर्वाद देती है।
माता बगलामुखी की साधना सप्त ऋषियों ने वैदिक काल में ही किया था जिस वजह से उनके चालीसा के पाठ से सारी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और भक्त हर प्रकार की बुरी ऊर्जा से सुरक्षित रहता है।
ऐसा कहाँ गया है कि देव ऋषि नारद ने भी कुमारो से प्रेरित होकर माता बगलामुखी की उपासना की थी जिस वजह से उनके चालीसा के पाठ से भक्ति के जीवन में सदाचार बनी रहती है और वह कुकर्मों से दूर रहता हैं।
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