विनय चालीसा (Vinay Chalisa): नीम करौरी बाबा

॥ दोहा ॥

मैं हूँ बुद्धि मलीन अति । श्रद्धा भक्ति विहीन ॥
करूँ विनय कछु आपकी । हो सब ही विधि दीन ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय नीब करोली बाबा । कृपा करहु आवै सद्भावा ॥

कैसे मैं तव स्तुति बखानू । नाम ग्राम कछु मैं नहीं जानूँ ॥

जापे कृपा द्रिष्टि तुम करहु । रोग शोक दुःख दारिद हरहु ॥

तुम्हरौ रूप लोग नहीं जानै । जापै कृपा करहु सोई भानै ॥

करि दे अर्पन सब तन मन धन । पावै सुख अलौकिक सोई जन ॥

दरस परस प्रभु जो तव करई । सुख सम्पति तिनके घर भरई ॥

जय जय संत भक्त सुखदायक । रिद्धि सिद्धि सब सम्पति दायक ॥

तुम ही विष्णु राम श्री कृष्णा । विचरत पूर्ण कारन हित तृष्णा ॥

जय जय जय जय श्री भगवंता । तुम हो साक्षात् हनुमंता ॥

कही विभीषण ने जो बानी । परम सत्य करि अब मैं मानी ॥

बिनु हरि कृपा मिलहि नहीं संता । सो करि कृपा करहि दुःख अंता ॥

सोई भरोस मेरे उर आयो । जा दिन प्रभु दर्शन मैं पायो ॥

जो सुमिरै तुमको उर माहि । ताकि विपति नष्ट ह्वै जाहि ॥

जय जय जय गुरुदेव हमारे । सबहि भाँति हम भये तिहारे ॥

हम पर कृपा शीघ्र अब करहु । परम शांति दे दुःख सब हरहु ॥

रोक शोक दुःख सब मिट जावै । जपै राम रामहि को ध्यावै ॥

जा विधि होई परम कल्याणा । सोई सोई आप देहु वरदाना ॥

सबहि भाँति हरि ही को पूजे । राग द्वेष द्वंदन सो जूझे ॥

करै सदा संतन की सेवा । तुम सब विधि सब लायक देवा ॥

सब कुछ दे हमको निस्तारो । भवसागर से पार उतारो ॥

मैं प्रभु शरण तिहारी आयो । सब पुण्यन को फल है पायो ॥

जय जय जय गुरुदेव तुम्हारी । बार बार जाऊं बलिहारी ॥

सर्वत्र सदा घर घर की जानो । रूखो सूखो ही नित खानो ॥

भेष वस्त्र है सादा ऐसे । जाने नहीं कोउ साधू जैसे ॥

ऐसी है प्रभु रहनी तुम्हारी । वाणी कहो रहस्यमय भारी ॥

नास्तिक हूँ आस्तिक ह्वै जावै । जब स्वामी चेटक दिखलावै ॥

सब ही धर्मन के अनुयायी । तुम्हे मनावै शीश झुकाई ॥

नहीं कोउ स्वारथ नहीं कोउ इच्छा । वितरण कर देउ भक्तन भिक्षा ॥

केही विधि प्रभु मैं तुम्हे मनाऊँ । जासो कृपा-प्रसाद तव पाऊँ ॥

साधु सुजन के तुम रखवारे । भक्तन के हो सदा सहारे ॥

दुष्टऊ शरण आनी जब परई । पूरण इच्छा उनकी करई ॥

यह संतन करि सहज सुभाऊ । सुनी आश्चर्य करई जनि काउ ॥

ऐसी करहु आप अब दाया । निर्मल होई जाइ मन और काया ॥

धर्म कर्म में रूचि होई जावे । जो जन नित तव स्तुति गावै ॥

आवे सद्गुन तापे भारी । सुख सम्पति सोई पावे सारी ॥

होय तासु सब पूरन कामा । अंत समय पावै विश्रामा ॥

चारि पदारथ है जग माहि । तव कृपा प्रसाद कछु दुर्लभ नाही ॥

त्राहि त्राहि मैं शरण तिहारी । हरहु सकल मम विपदा भारी ॥

धन्य धन्य बड़ भाग्य हमारो । पावै दरस परस तव न्यारो ॥

कर्महीन अरु बुद्धि विहीना । तव प्रसाद कछु वर्णन कीन्हा ॥

॥ दोहा ॥

श्रद्धा के यह पुष्प कछु । चरणन धरी सम्हार ॥
कृपासिन्धु गुरुदेव प्रभु । करी लीजै स्वीकार ॥

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