॥ दोहा ॥
मूर्ति स्वयंभू शारदा, मैहर आन विराज ।
माला, पुस्तक, धारिणी, वीणा कर में साज ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय शारदा महारानी । आदि शक्ति तुम जग कल्याणी ॥
रूप चतुर्भुज तुम्हरो माता । तीन लोक महं तुम विख्याता ॥
दो सहस्त्र बर्षहि अनुमाना । प्रगट भई शारदा जग जाना ॥
मैहर नगर विश्व विख्याता । जहाँ बैठी शारदा जग माता ॥
त्रिकूट पर्वत शारदा वासा । मैहर नगरी परम प्रकाशा ॥
शरद इन्दु सम बदन तुम्हारो । रूप चतुर्भुज अतिशय प्यारो ॥
कोटि सूर्य सम तन द्युति पावन । राज हंस तुम्हारो शचि वाहन ॥
कानन कुण्डल लोल सुहावहि । उरमणि भाल अनूप दिखावहिं ॥
वीणा पुस्तक अभय धारिणी । जगत्मातु तुम जग विहारिणी ॥
ब्रह्म सुता अखंड अनूपा । शारदा गुण गावत सुरभूपा ॥
हरिहर करहिं शारदा बन्दन । बरुण कुबेर करहिं अभिनन्दन ॥
शारदा रूप चण्डी अवतारा । चण्ड-मुण्ड असुरन संहारा ॥
महिषा सुर वध कीन्हि भवानी । दुर्गा बन शारदा कल्याणी ॥
धरा रूप शारद भई चण्डी । रक्त बीज काटा रण मुण्डी ॥
तुलसी सूर्य आदि विद्वाना । शारदा सुयश सदैव बखाना ॥
कालिदास भए अति विख्याता । तुम्हारी दया शारदा माता ॥
वाल्मीक नारद मुनि देवा । पुनि-पुनि करहिं शारदा सेवा ॥
चरण-शरण देवहु जग माया । सब जग व्यापहिं शारदा माया ॥
अणु-परमाणु शारदा वासा । परम शक्तिमय परम प्रकाशा ॥
हे शारदा तुम ब्रह्म स्वरूपा । शिव विरंचि पूजहिं नर भूपा ॥
ब्रह्म शक्ति नहि एकउ भेदा । शारदा के गुण गावहिं वेदा ॥
जय जग बन्दनि विश्व स्वरुपा । निर्गुण-सगुण शारदहिं रुपा ॥
सुमिरहु शारद नाम अखंडा । व्यापइ नहिं कलिकाल प्रचण्डा ॥
सूर्य चन्द्र नभ मण्डल तारे । शारदा कृपा चमकते सारे ॥
उद्धव स्थिति प्रलय कारिणी । बन्दउ शारदा जगत तारिणी ॥
दु:ख दरिद्र सब जाहिं नसाई । तुम्हारी कृपा शारदा माई ॥
परम पुनीति जगत अधारा । मातु शारदा ज्ञान तुम्हारा ॥
विद्या बुद्धि मिलहिं सुखदानी । जय जय जय शारदा भवानी ॥
शारदे पूजन जो जन करहीं । निश्चय ते भव सागर तरहीं ॥
शारदा कृपा मिलहिं शुचि ज्ञाना । होई सकल विधि अति कल्याणा ॥
जग के विषय महा दु:ख दाई । भजहुँ शारदा अति सुख पाई ॥
परम प्रकाश शारदा तोरा । दिव्य किरण देवहुँ मम ओरा ॥
परमानन्द मगन मन होई । मातु शारदा सुमिरई जोई ॥
चित्त शान्त होवहिं जप ध्याना । भजहुँ शारदा होवहिं ज्ञाना ॥
रचना रचित शारदा केरी । पाठ करहिं भव छटई फेरी ॥
सत्–सत् नमन पढ़ीहे धरिध्याना । शारदा मातु करहिं कल्याणा ॥
शारदा महिमा को जग जाना । नेति-नेति कह वेद बखाना ॥
सत्–सत् नमन शारदा तोरा । कृपा दृष्टि कीजै मम ओरा ॥
जो जन सेवा करहिं तुम्हारी । तिन कहँ कतहुँ नाहि दु:खभारी ॥
जो यह पाठ करै चालीसा । मातु शारदा देहुँ आशीषा ॥
॥ दोहा ॥
कूट चन्द्रिका सुभग शिर, जयति जयति सुख खानि ।
पार्वती निज भक्त हित, रहहु सदा वरदानि ॥
॥ इति श्री शारदा चालीसा संपूर्णम् ॥